ज़िन्दगी गुलज़ार है
२ अप्रैल ज़ारून
आज का दिन बड़ी टेंशन में गुज़रा और इसका आगाज़ (शुरुआत) उस वक्त हुआ, जब
तबादले के बाद मॉम मेरे पास आई थी. मैं उस वक्त छत पर बैठा अखबार देख रहा था.
“हाँ तो ज़ारून! क्या सोचा तुमने?” उन्होंने मेरे पास बैठते ही बात शुरू कर दी थी.
“किस बारे में?” मुझे हकीकत
में हैरत हुई थी कि वो किस बारे में बात कर रही हैं.
“तुम्हारी शादी के बारे में और किस चीज के बारे में?
तुम्हारे सब दोस्तों की शादी हो चुकी है, अब
तुम्हारी भी हो जानी चाहिए. वैसे भी अभी तुम पाकिस्तान में हो और शादी के लिए इससे
बेहतर मौका कहीं नहीं मिलेगा.”
मैंने गहरी साँस लेकर अखबार सामने की टेबल पर रख दिया, “हाँ,
वाक़ई अब मुझे शादी कर ही लेना चाहिए.”
“शुक्र है अब तुम्हें भी अक्ल आई.” मॉम मेरी बात
सुनकर बहुत खुश हुई थी, “कोई लड़की देखी है या वो भी मुझे ही
देखनी पड़ेगी.”
“हाँ देख ली है.”
“अच्छा नाम क्या है? तालीम,
शक्ल और सूरत के बारे में बताओ.”
“नाम कशफ़ है. मेरे साथ ही इंटरनेशनल रिलेशनशिप में
एम.ए. किया है. आजकल फैसलाबाद में ए.सी. है. आरिफ़ एक मातहत (under) काम करती है. जहाँ तक शक्ल का ताल्लुक है, तो ज़ाहिर
है मुझे तो ख़ूबसूरत ही लगती है. आपको शायद न लगे. नॉर्मल शक्ल-वा-सूरत है. उसकी
फैमिली के बारे में मैं कुछ नहीं जानता, सिवाय इसके कि वो एक
मिडिल क्लास फैमिली से ताल्लुक रखती है.”
मैंने बड़े आराम से उनके सारे सवालों के जवाब दिए थे. मॉम के तिसरैत
(तठस्थता) देखकर मुझे हैरानी हुई. उन्होंने कहा, “मेरा ख़याल है तुम मज़ाक़
कर रहे हो.”
“मैं बिलकुल संजीदा हूँ और आपने ये कैसा सोचा कि मैं
मज़ाक़ कर रहा हूँ.”
“तो उस लड़की के लिए इतने सालों से जोग लेकर
बैठे थे.” मुझे उनकी बात बहुत इन्सल्टिंग लगी.
“मैंने किसी के लिए जोग नहीं लिया. पहले मैंने
शादी के बारे में सोचा नहीं था. अब सोचा है, तो अपनी पसंद
बता दी है.”
“तुमने कहा और मैंने सुन लिया. अब तुम मेरी
सुनो. अगर मैं तुम्हारी चॉइस को रिजेक्ट कर दूं तो?”
“आप उसे अपने लिए रिजेक्ट कर सकती हैं,
मेरे लिए नहीं. मुझे हर कीमत पर उसी से शादी करना है.” मैंने
हिम्मती अंदाज़ में कहा.
“देखो ज़ारून! वो ख़ूबसूरत नहीं है, कोई बात नही. उसकी तालीम कम होती, तब भी ठीक था. मगर
उसका फैमिली बैकग्राउंड बहुत अच्छा होना चाहिए.”
“फैमिली बैकग्राउंड का मुझे क्या करना है? मुझे उससे शादी करनी है, उसकी फैमिली से नहीं और फिर
शादी के बाद वो हमारी फैमिली का हिस्सा बन जाएगी.”
“तुम्हे उसके फैमिली बैकग्राउंड से मतलब हो या न हो
या न हो, मुझे है. हमें इसी सोसाइटी में रहना है. हमारा एक
स्टेटस है. एक सोशल सर्कल है. उसे कैसे मो’तरिफ़ (acknowledge) करेंगे हम, जब लोग पूछेंगे कि अपने लायक सपूत के लिए
कौन सा हीरा पसंद किया है आपने और जब लोग तुमसे पूछेंगे कि तुम उसकी कौन सी खूबी
पर आशिक हुए हो, तो क्या कहोगे? उसकी
मामूली शक्ल, हैसियत पर या मिडिल क्लास पर? बताओ क्या कहोगे?” मॉम का लहज़ा बहुत खुश्क था.
“उसके बेदाग किरदार (चरित्र) पर” मैंने उतनी ही तेजी
से कहा था.
“हाँ, बेदाग माज़ी (अतीत) और
बेदाग किरदार पर मिडिल क्लास लड़कियों अपनी पारसाई (पवित्रता) के बस ढोंग ही करती
हैं. कुछ और नहीं होता, इसलिए तुम जैसे को फंसाने के लिए ये
तरीका है. इस तरह उसने तुम्हें फांस लिया. अगर इतनी ही पारसा (पवित्र) होती,
तो तुमसे मिलना तो एक तरफ़, तुम्हारी शक्ल भी न
देखती. कहाँ ये रोमांस फ़रमा रही हैं. क्या बेदाग किरदार है!”
“तब आपको ये जान कर खुशी होगी कि वो आपके बेटे का
मुँह भी देखना नहीं चाहती, और आपको ये जानकर मज़ीद (बड़ी) ख़ुशी
होगी कि वो मुझे नहीं फांस रही है, मैं उसे फांस रहा हूँ.”
“जब वो तुम्हारी शक्ल भी देखना नहीं चाहती, तो तुमसे शादी कैसे करेगी?” मॉम ने मुझ पर तंज किया
था.
“ये आपका नहीं मेरा मसला है.” मैंने उनके तंज को
नज़र-अंदाज़ कर दिया.
“उस में ऐसा क्या है, जो तुम
इस तरह पागल हो रहे हो?”
“जो पसंद आया था, वो आपको बता
दिया है. वैसे ये सवाल आपने कभी मेरे भाईयों से नहीं किया, जब
उन लोगों ने लव मैरिज की थी.”
“तुम अपने भाईयों का कशफ़ के साथ कम्पैरीज़न मत करो,
क्योंकि उनके दर्मियां कोई मुकाबला नहीं है और तुम्हारे भाईयों ने
लव मैरिज करते वक्त तुम्हारी तरह आँखें बंद करके इश्क नहीं फ़रमाया था.”
“उन्होंने मुहब्बत नहीं बिजनेस किया था, मगर मैं नहीं करूंगा. मैं हर कीमत पर कशफ़ ही से शादी करूंगा.”
वो मेरी बात पर एकदम से खड़ी हो गयी थीं.
“मेरे ख्याल से इस बारे में तुम अपने डैडी से बात
करो, तो ठीक है. शायद वो तुम्हें वो सब समझाने में कामयाब हो
जायेंगे, जो मैं नहीं समझा सकती.”
“कोई मुझे कुछ भी नहीं समझा पायेगा, मैं अपना फैसला नहीं बदलूंगा.
“ठीक है, यदि तुम फैसला नहीं
बदलोगे, तो उस लड़की या हममें से किसी एक का इंतखाब (चुनाव)
कर लेना.”
वो ये कहकर बड़े गुस्से में मेरे कमरे से निकल गई.
मैं जानता था की मॉम आज ही सब डैडी को बता देंगी, और
मैं डैडी को किसी सूरत में क़ायल नहीं कर सकता. सर अबरार ही थे, जो ये काम कर सकते थे. मैं सर अबरार से बात करने यूनिवर्सिटी चला गया.
मुझे देखकर वो हैरान हुए थे.
“सर क्या आप मेरे साथ घर चल सकते हैं?”
“क्यों भई ऐसी भी क्या बात हो गयी?”
“सर मेरी शादी का मामला है.”
“तो तुम मुझे क्यों इनवोल्व कर रहे हो. क्या इतनी
मामूली सी बात के लिए मुझे लेकर आये हो.” वो काफी नाराज़ हो गए थे.
“सर एक अहम मसला है. मैं अपनी मर्ज़ी से शादी करना
चाहता हूँ. और मॉम इस पर तैयार नहीं है. उन्होंने मुझे घर से निकाल देने की धमकी
दी है. और मेरा ख़याल है कि वो आज लंच पर ही डैडी से बात कर लेंगी. इसलिए मैं आपको
लंच से पहले लाया हूँ.” मैंने उन्हें पूरी बात बता दी.
“किससे शादी करना चाहते हो तुम कि भाभी तुम्हें घर
से निकाल देना चाहती है.”
मैंने झिझकते हुए कशफ़ का नाम ले लिया.
“क्या? कशफ़ मुर्तज़ा से शादी
करना चाहते हो.”
मैंने उनके सवाल पर इस्बात (हामी) में सिर हिला दिया.
“उस कशफ़ मुर्तज़ा से जिस पर तुमने हाथ उठाया था. जो
तुम्हारे नजदीक मामूली शक्ल-वा-सूरत की आम लड़की है. ज़ारून तुम क्या मजाक कर रहे हो?”
उन्हें यकीन नहीं आ रहा था.
“मैं मज़ाक़ नहीं कर रहा हूँ. वो सब माज़ी का हिस्सा
है. मैं उसे वाक़ई पसंद करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ.”
“और ये पसंदगी मेरे घर पर हुई मुलाकात के बाद शुरू
हुई होगी.” उन्होंने तंजिया अंदाज़ में कहा था.
मैं हँस पड़ा, “ओ नो, मैं उससे पहले भी दो
बार मिल चुका था. आपके घर पर तो तीसरी मुलाक़ात हुई थी.”
“व्हाट” वो मुझसे बे-इख्तियार बोल पड़े, “और तुमने मुझे नहीं बताया और उसने भी ज़ाहिर नहीं किया. तुम दोनों ने मुझे
बेवकूफ़ बनाया.”
“नहीं ऐसा नहीं है. वो मुलाकात इतनी अच्छी नहीं थी
कि उनके बारे में बताया जाता.” मैंने अपनी पोजीशन क्लियर की.
“तुमने कशफ़ से इस मामले में बात की?”
“पहले अपने वालिदान से बात कर लूं, फिर उससे भी कर लूंगा.”
“इसका मतलब वो तुमसे शादी पर तैयार है.” उन्होंने
मेरी बात का उल्टा मतलब लिया.
“शादी तो दूर की बात है, वो
मेरी शक्ल भी देखना पसंद नहीं करती. ज़ाहिर है उसके वालिदान मेरे जैसा प्रपोजल कैसे
रद्द कर सकते हैं?” मैंने उनके साथ खुद को भी तसल्ली दी थी.
“अगर वो तुम्हारी शक्ल देखने पर तैयार नहीं, तो शादी के लिए कैसे रज़ामंद होगी? फिर तुम्हें ये
ख़ुशफ़हमी क्यों है कि उसके वालिदान तुम्हारा प्रपोजल रद्द नहीं कर सकते. वो माँ-बाप
पर इंहिसार (निर्भर होना) करने वाली कोई सोलह-सत्रह साल की लड़की नहीं है, मैच्योर है, एक अच्छे ओहदे पर फ़ाइज़ (नियुक्त) है.
उसके वालिदान उसकी मर्ज़ी के बगैर कुछ नहीं कर सकते और ये भी हो सकता है कि उसकी
कहीं मंगनी हो चुकी हो. इसलिए बेहतर है कि पहले तो कशफ़ से बात कर लो, ये ना हो कि तुम्हारे वालिदान तुम्हारा रिश्ता लेकर जायें और उसकी शादी
में शिरकत करके वापस आयें.”
वो वज़ा (साफ़) तौर पर मेरा मज़ाक उड़ा रहे थे.
“लेकिन अब मैं मॉम से बात कर चुका हूँ और वो डैडी को
भी बता देंगी, इसलिए अभी आप उसने तो बात करें.”
मैं लंच से कुछ देर पहले सर अबरार के साथ घर पहुँच गया था. डैडी
अभी घर नहीं आये थे और मॉम सर अबरार को देखते हुए परेशान हो गयीं थी. वो जान गयीं
थीं कि मैं उन्हें क्यों लाया हूँ. अंदर से वो यक़ीनन गुस्सा हो रही होंगी, मगर
ब-ज़ाहिर (बाहरी तौर पर दिखाना) उन्होंने बड़ी खुशदिली से सर अबरार का इस्तकबाल
(स्वागत) किया था.
डैडी सर अबरार को देखकर काफ़ी परेशान हुए थे क्योंकि वो कभी इस वक़्त
उनसे मिलने नहीं आते थे, मगर उन्होंने वजह नहीं पूछी. लंच के बाद सर अबरार
ने डैडी से कहा था –
“जुनैद मुझे तुमसे कुछ काम है.”
डैडी उन्हें लेकर स्टडी में चले गए और मैं अपने कमरे में. तकरीबन
एक घंटा के बाद मुलाज़िम मुझे बुलाने आया था.
जब मैं स्टडी में गया, तो वहाँ मुकम्मल ख़ामोशी थी. किसी ने मुझे बैठने के
लिए नहीं कहा. मैं ख़ुद एक कुर्सी खींचकर बैठ गया.
“तो शादी से इंकार की ये वजह थी. अगर आज ये वजह बता
सकते हो, तो सात साल पहले भी बता सकते थे. इतने इंतज़ार की
क्या ज़रूरत थी?” डैडी ने मेरे बैठते ही कहा था.
“मैं पिछले सात साल इस बारे में ला’इल्म था. फिर
मैंने कभी उसके बारे में इस अंदाज़ में सोचा भी नहीं था. अब ऐसा है, तो मैंने आपको बता दिया है.”
“मैं तुम्हारी वज़ाहत (सफ़ाई) को नहीं मान सकता.”
“मगर ये सच है.”
“हाँ बहुत सच्चे हो तुम! दुनिया तुम्हारे सच की वजह
से ही तो चल रही है, मगर मैं एक बात वज़ा (साफ़) कर दूं. मैं
क़त’अन (कदापि) भी शादी के लिए रज़ामंदी नहीं दूंगा. हाँ, अपनी
मर्ज़ी करना चाहते हो, तो कर लो. मगर हमसे कोई ताल्लुकात ना
रखना और तुम्हें इन सब आशायसात (luxury) से भी दस्त-बरदार
(बेदखल, विरक्त) होना पड़ेगा.” उन्होंने एकदम ही मुझे अपना
फैसला सुना दिया था.
“ठीक है. आप यही चाहते हैं, तो
ऐसा ही सही. मैं इन लक्ज़रीज़ के बगैर भी रह सकता हूँ. इतना तो हौसला है मुझे कि
मुश्किल वक़्त का मुक़ाबला कर सकूं.”
“कहना बहुत आसान होता है और करना उतना ही मुश्किल.
मुश्किल वक़्त का मुक़ाबला तुम करोगे? तुम! तुम्हें मुश्किल
वक़्त सिर्फ़ कहना आता है. कभी मुश्किल वक़्त देखा है तुमने? कभी
कोई तंगी देखी है? किसी चीज़ के लिए दिल मारना पड़ा है तुम्हें?
तुम्हें मालूम है एक साल में कितना ख़र्च करते हो तुम? ये जो कपड़े हैं ना तुम्हारे जिस्म पर, ये तुम्हारी २
माह की तनख्वाह के बराबर की कीमत के हैं और ये जो घड़ी बांधी हुई है ना तुमने,
इसकी कीमत तुम्हारी ६ माह की तनख्वाह के बराबर है. बात करतेहो,
मुश्किल वक़्त गुज़ारने की. ज़रा अपने एक माह के अख्रज़ात की लिस्ट बनाओ
और देखो की तुम्हारी तनख्वाह से उनमें से कौन से अख्रज़ात पूरी हो सकते हैं?
अपनी तनख्वाह से तुम एक दिन नहीं गुज़ार सकते. आखिर कौन-कौन सी
शाह-खर्चियाँ छोड़ोगे”
“ठीक है आपने मुझे बहुत कुछ दिया है, मगर आपने यही सब अपनी दूसरी औलाद को भी दिया है. मुझे दूसरों से ज्यादा
कुछ नहीं दिया और फिर आपके पास दौलत थी, तो अपने मुझे
लक्ज़रीज़ दी. ना होती, तो कभी ना देते और कोई इतना बड़ा एहसान
नहीं किया आपने, सब माँ-बाप अपनी औलाद के लिए यही सब कुछ
करते हैं. मैं भी करूंगा. लेकिन मैं आपको साफ़-साफ़ बता रहा हूँ, मैं ये फैसला अपनी मर्ज़ी से करूंगा. मैं अपनी ज़िन्दगी को अपने तरीके से
गुज़ारूंगा. अगर आप…”
“ठीक है, जैसा तुम चाहते हो
वैसा ही होगा. अब यहाँ से चले जाओ.” डैडी ने मेरी बात काट कर बड़ी दुरुस्तगी से
मुझे कहा था.
“आप मुझे” मैंने कुछ कहने की कोशिश की थी,
मगर उन्होंने मेरी बात दुबारा काट दी.
“तुम्हें कुछ कहने की ज़रूरत नहीं है, तुम्हारी मज़ीद (और) बकवास सुनने का हौसला नहीं है मुझमें. अब यहाँ से
जाओ.”
मैं बड़ी ख़ामोशी से वहाँ से उठकर कमरे में आ गया था.
बहुत अजीब से ज़ज्बात है इस वक़्त मेरे. मुझे उनकी रज़ामंदी की ज़रा भी
ख़ुशी नहीं है. मैंने उन्हें बहुत हर्ट किया है. मैं ऐसा नहीं करना चाहता था, मगर
पता नहीं ऐसा कैसे हो गया. शादी के लिए कशफ़ क्यों मेरे ज़ेहन में आयी मुझे ये भी
पता नहीं. बहुत सी चीज़ें, बहुत सी बातें, बहुत से फैसले बस ऐसे ही हो जाते हैं. ना जानते हुये, ना चाहते हुए.
shahil khan
20-Mar-2023 07:04 PM
nice
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Radhika
09-Mar-2023 04:23 PM
Nice
Reply
Alka jain
09-Mar-2023 04:10 PM
शानदार
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